प्रकृति लेती है अपना बदला--इसलिए प्रगति करो मगर प्रकृति से छेड़छाड़ की शर्त पर नहीं--डॉक्टर जोशी
विरेन्द्र चौधरी/संदीप जोशी किट्टू
आगरा। ना तो नदियां अपना रास्ता भूलती है ना ही प्रकृति अपना स्वभाव भूलती है। इनसे कोई छेड़छाड़ करता है तो प्रकृति अपना बदला जरूर लेती है। उत्तराखंड त्रासदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
पद्मश्री पर्यावरणवीद डॉक्टर अनिल कुमार जोशी ने एक कार्यक्रम में बताया कि प्रकृति अपना स्वभाव नहीं भूलती ना ही नदियां अपना रास्ता भूलती है। समाज के उत्थान के लिए प्रगति जरूरी है लेकिन प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर
की शर्त पर नहीं। उन्होंने कहा जहां भी ऐसा हुआ है वहां प्रकृति ने बदला लिया है। श्री जोशी नागरी प्रचारिणी सभागार में पत्रकारों से रूबरू थे।
श्री जोशी ने बताया कि प्रगति के लिए इंसान प्रकृति को भूल रहा है। इसलिए मानव को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। उत्तराखंड त्रासदी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति बदला ले रही है। डॉक्टर जोशी ने देश की नदियों की खराब होती स्थिति के लिए कहा कि नदियों के संरक्षण पर काम करने की आवश्यकता है। अगर पानी नहीं होगा तो जियेगें कैसे? उन्होंने देहरादून में नदी संरक्षण के लिए अपनाई तकनीक की जानकारी देते हुए बताया कि जिस नदी में पानी कम हो रहा हो, उसके आस पास गढ्ढे खोद दिये जायें।ताकि बरसात में गढ़ढे पानी से भर जायें, इसका लाभ नदियों को मिलेगा।
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