सांसद को हाशिये पर लाने वाले हाशिये पर आ सकते हैं ?

सांसद को हाशिये पर लाने वाले हाशिये पर आ सकते हैं ?••बसपा सांसद की ईमानदारी पर सियासी चाबुक से उपजे सवाल••गठबंधन से बने सांसद को गठबंधन धर्म निभाना पड़ा भारी


अरविन्द नैब

सहारनपुर। बसपा से निकाय चुनाव लड़कर दूसरी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले ईमानदार छवि के हाजी फजलुर्रहमान के कारण लोकप्रिय सांसद राघव लखनपाल शर्मा को पराजित कर सांसद बनने में सफल हुए जबकि उस समय बसपा का कोई सांसद नही था और शून्य से 10 सांसद निर्वाचित होने में सपा-बसपा का गठबंधन बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ।

 लेकिन अपने सांसदों के निर्वाचित होते ही सपा का दामन छिटक देने वाली बसपा सुप्रीमो ने ये भी नही सोचा कि दलो का गठबंधन अलग करना जितना आसान है उतना दूसरे दलों के नेताओ और कार्य कर्ताओं से अलग होना सरल नही होता है। उसके बाद भी वह बसपा सुप्रीमो के निर्देशों का अनुपालन करते रहे हैं, लेकिन बसपा सुप्रीमो के सापेक्ष उनकी अधिक ईमानदारी उन्हें यहां हाशिये पर धकेलने और उनकी पार्टी उनसे किनारा करती हुई दिखाई दे रही है और ये हुआ तब जब सपा से बसपा में इमरान मसूद की एंट्री हुई और वर्तमान महापौर चुनाव में सांसद को कोई ज़िम्मेदारी भी नही दी गयी। जिसके चलते ही उनके समर्थक एवम उन्हें वोट देकर सांसद बनाने वाले बसपा सुप्रीमो से जानना चाहते हैं कि क्या सहारनपुर संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की यही गलती थी कि उन्होंने सीधे-शरीफ और ईमानदार छवि के हाजी फजलुर्रहमान को बसपा से सांसद बनाया ? बसपा ने जिस तरह सपा से गठबंधन करके ज़ीरो से अपने 10 सांसद बनाने में सफलता हासिल की है उसमें वर्तमान बसपा सांसद हाजी फजलुर्रहमान ने जहां सपा के उन साथियों का भी दिल खोलकर साथ दिया जो उन्हें विजयी बनाने मे दिलोजान से लगे हुए थे, जिसके चलते ही पार्टी ने उन्हें हाशिये पर लाने का काम किया है तो सहारनपुर के मतदाता बसपा सुप्रीमो से जानना चाहते हैं कि वह किस तरह की राजनीति कर रही हैं जो ऐसे लोगो को हाशिये पर लाने की प्रक्रिया अपनाये हुए हैं। 

संसदीय चुनाव में एक साल का वक्त भी नही रह गया है लेकिन उन्हें हाशिये पर लाने का सवाल चुनाव तक बड़ी शक्ल भी अख्तियार करता नजर आ रहा है और पिछले चुनाव में तीसरे नम्बर वाला चुनावी प्रतिस्पर्धा में आ भी पायेगा, इस पर भी सवाल खड़ा होना शुरू हो गया है। बसपा में जिस तरह से व्यक्ति और व्यक्तित्व के साथ खेल किया जा रहा है उससे सियासी दल की साख भी स्वाभाविक रूप से प्रभावित हो रही है। बसपा सांसद हाजी फजलुर्रहमान के साथ जिस तरह की सियासत हो रही है, उससे उनके प्रति जन साधारण में सहानुभूति बढ़ती हुई दिखाई दे रही है, जिसका प्रभाव आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है।


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