महबूबा कोई सी भी हो मंहगी पड़ती है आज हम बात कर रहे हैं देसी दारू की

महबूबा कोई सी भी हो मंहगी पड़ती है आज हम बात कर रहे हैं देसी दारू की

भूपेन्द्र चौधरी/विरेन्द्र चौधरी
सहारनपुर। मेरा अनुभव तो ये ही कहता है महबूबा कोई सी भी हो,मंहगी ही पड़ती हैं।चाहने वालों की मजबूरी है महबूबा। आज हम बात कर रहे हैं महबूबा ब्रांड की देसी दारू की। जी हां समाचार में महबूबा ब्रांड की जो तस्वीर दिखाई दे रही है,उस पर लेट है 68 रूपये। ठेकेदार बिकवा रहे हैं 70 की। सुबह 8 बजे से 10 बजे तक 80 से 100 रूपये में दर्शन होते हैं महबूबा के। हमनें जब पड़ताल की तो महबूबा पर मैन्युफैक्चरिंग डेट के साथ ही तारीख 23-8 छपा नजर आ रहा है।
अब बड़ा सवाल यह है कि इसमें किस किस की मिलीभगत है,जो गरीब मजदूरों से इस लूट में शामिल हैं। क्योंकि महबूबा ब्रांड का इस्तेमाल अमीर तो करते नहीं,गरीब मजदूर ही करते हैं। करतूत महबूबा के बेंचने वालों की है लोग कोसते हैं महात्मा जी को। जांच नितांत जरूरी है ताकि हजारों रूपये प्रति ठेका चल रही है,उस पर रोक लगाई जा सके।
पश्चिम प्रदेश निर्माण आंदोलन से जुड़े और चलें आर्थिक आज़ादी की ओर, विरेन्द्र चौधरी पत्रकार केन्द्रीय उपाध्यक्ष पश्चिम प्रदेश निर्माण संयुक्त मोर्चा 8057081945

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