जब पत्थर की मूर्तियों में प्राण डाले जा सकते है तो मानव लाशों में क्यूं नहीं -- निर्मला दहिया सोशल रिफॉर्मर

 जब पत्थर की मूर्तियों में प्राण डाले जा सकते है तो मानव लाशों में क्यूं नहीं -- निर्मला दहिया सोशल रिफॉर्मर 

विरेन्द्र चौधरी/अवनीश धीमान 

हिसार। जब पत्थर की मूर्तियों में प्राण डाले जा सकते है तो मानव लाशों में क्यूं नहीं ? ये कहना है हिसार हरियाणा की सोशल रिफॉर्मर निर्मला दहिया का। उनका कहना है जो काम सरकार को करने चाहिए वो काम ना करके जनता से मंदिरों में घंटियां बजवाई जा रही है।

सोशल रिफॉर्मर निर्मला दहिया का कहना है कि देश में लाखों करोड़ों युवा बेरोजगारी से जूझ रहे है,भगवा सरकार उन्हें रोजगार देने के बजाए उन्हें मंदिरों में घंटियां बजाने को कह रहे है,इससे काम नही चलने वाला। श्रीमती दहिया ने कहा मंदिरों की बात करें तो सरकार को शिक्षा के मंदिरों को बढ़ाना चाहिए, शिक्षा होगी तो सामाजिक विकास होगा। उन्होंने कहा मंहगाई आसमान छू रही है,लोग अच्छे खाने से वंचित है, सरकार इन सामाजिक मुद्दों को छुपाने के लिए युवाओं को मंदिरों में उलझा रही है। मंदिर खाने और जीने की जरूरतों को पूरा नहीं कर पायेंगे। उन्होंने कहा सरकार को चाहिए कि वो आम आदमी की जरूरतों को देखते हुए जनहित में काम करें।

निर्मला दहिया ने कहा कि सरकार व अंधभक्त कहते है हिंदू धर्म खतरे में है। मैं पुछती हुं क्या खतरा है हिंदू धर्म को। हिन्दू धर्म पर अगर कोई खतरा है तो वो मंहगाई और बेरोजगारी है। उन्होंने कहा अगर सरकार रोजगार मुहैया कराती है तो हिन्दू सशक्त बनेगा। उन्होंने कहा सरकार के लिए राष्ट्र धर्म सर्वोपरि होना चाहिए। राष्ट्र बचेगा तो हिन्दू बचेगा। अगर इसी तरह मंहगाई और बेरोजगारी बढ़ती रही तो हिन्दू ही नहीं पूरा राष्ट्र खतरे में पड़ जायेगा। निर्मला दहिया ने कहा सरकार युवाओं को अंध-भक्त बनाने के बजाय उन्हें रोजगार दे, रोजगार होगा तो मंदिर की घंटियों की आवाज में भी आंनद आयेगा। उन्होंने कहा कहावत भी है," भूखे पेट भजन ना हो गोपाला ये रखी तेरी कंठी माला"

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