तेरा गुस्सा तेरा मुस्कुराना याद रहेगा |
सहारनपुर। सहारनपुर। हाथ कांप रहे हैं लिखते हुए,तू मेरे पास नहीं है। शायद मैं झूठ बोल रहा हुं तू मेरे पास ही तो है, हवाओं में, फिजाओं में,मेरे आस-पास तू ही तू है। मेरे आस-पास रहकर भी अब तू लड़ नहीं सकता मेरे साथ। लड़ाई रह गई शेष बस इतनी सी,कि मैं तेरे से वरिष्ठ हुं।
दोस्तों वरिष्ठ पत्रकार जे एस बजाज आर्किटेक्ट अब दुनिया में नहीं है। यकीन नहीं आता। ऐसा लगता है आज भी कहीं मेरे आस-पास है, हवाओ मे, फिजाओं में,धूप में,छांव में, मुझे पुकार रहा है,अबे आजा,एक एक कप चाय पियेंगे।सुबह-सुबह ४बजे उठकर बैठ जाता था घर के छज्जे पे, फोन करके कहता था आजा एक एक कप चाय पियेंगे। अब कौन कहेगा आजा चाय पी जा। जब जब उसके घर के सामने से गुजरूंगा बस आंसू ही पिऊंगा। बहुत दिलदार था वो,जाते जाते भी दे गया मेरी आंखों में आंसू,दे गया अपनी यादें।
जसवीर सिंह बजाज के शायद सबसे करीब दोस्तों में मैं ही था। हर अंतरंग बातें मुझसे करता था,जब गया तो मुझे इशारा भी नहीं किया जा रहा हुं। शायद वो जानता था मैं उसे जाने नहीं दूंगा या उसके साथ चलूंगा। बजाज एक बार वापिस आजा, मैं कह दूंगा तू ही वरिष्ठ है।
कोरोना काल में बजाज साहब, अमरनाथ सहित उसकी आर्किटेक्ट एसोसिएशन ने भंडारा चलाया, कहा करता था मुझे आजा यार प्रसादा छक ले। अब कौन कहेगा,बस उसकी आवाज का इंतजार रहेगा।
बजाज साहब के अंतरंग मित्र नरेंद्र धीमान कहते हैं यार कुछ भी था, लेकिन बजाज शैरे हिंद था,यारो का यार था। नरेन्द्र ने कहा वो असली जिंदगी में हीरो थे।बात पोलिटिक्स की हो या जर्नलिज्म की,वो हमारे वरिष्ठ थे। हमारे बिग ब्रदर थे। हम उन्हें सैल्यूट करते हैं।
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