चारों वेदों में जाति विशेष का वर्णन नहीं,जातीय विद्वेष ही भारतवर्ष के पतन का कारण-----राजन स्वामी प्रेम के उदय से ही जातीयता की समाप्ति संभव –सन्त कमल किशोर
चारों वेदों में जाति विशेष का वर्णन नहीं,जातीय विद्वेष ही भारतवर्ष के पतन का कारण-----राजन स्वामी •• प्रेम के उदय से ही जातीयता की समाप्ति संभव –सन्त कमल किशोर
विरेन्द्र चौधरी/विनय कुमारसहारनपुर। निष्पक्ष रूप से यदि चारों वेदों का अवलोकन किया जाए तो उनमे कहीं भी शूद्रों की न तो निंदा की गई है और न ही उन्हे वेदाध्ययन अथवा यज्ञाधिकार से वंचित किया गया है। वेदों का अध्ययन कर क्रोध से रहित,शीलवान,संयमी,सत्य धर्म का पालनकर्ता,भक्त और परोपकारी व्यक्ति ही ब्राह्मण है। उपरोक्त ओजस्वी विचार प्राणनाथ ज्ञानपीठ के अधिष्ठाता स्वामी राजन जी महाराज ने दिल्ली रोड पर प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
स्वामी राजन जी ने जातीय विद्वेष को भारत के पतन का कारण बताते हुए कहा कि महऋषि वाल्मीकि रामायण में भगवान राम शबरी के जूठे बेर खाते हैं,वैश्यपिता और शूद्रा माता की सन्तान श्रवण कुमार को ब्राह्मण और ऋषि कहा गया है,प्रभु राम के गुरु वशिष्ठ जी भी उर्वशी अप्सरा (गणिका)की सन्तान थे,प्रभु राम अपने राजतिलक में निषादराज गुह को राजाओं जैसा सम्मान देते हैं,दासी पुत्र महीदास एत्रेय ऋग्वेद के व्याख्याकार हैं, दासी पुत्र विदुर का सम्मान भगवान श्री कृष्ण करते है-----तो इसका सीधा अर्थ यही है उस समय जातिभेद नहीं था। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता,सभी मानव होते हैं। कर्म विशेष से मानव ब्राह्मण,क्षत्रिय वैश्य या शूद्र होता है।
दिव्य शक्ति अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर सन्त श्री कमल किशोर जी महाराज ने शरीर के अंगों की चारों वर्णों से तुलना करते हुए कहा कि मानव मस्तिष्क मे ज्ञान का प्रकाश ही ब्राहमनत्व है,उदर वैश्य,दोनों बाहें क्षत्रिय और टांगें व पैर शूद्र हैं। जिस प्रकार शरीर के सभी अंगों का अपना-अपना महत्व है,एक अंग के बिना दूसरा अंग अपना कार्य संपादित नहीं कर सकता, ठीक वैसे ही समाज मे कार्यानुसार सभी का अपना अपना महत्व है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।ऋषियों ने वैदिक ज्ञान,आचार व्यवहार को संरक्षित रखने के लिए एक पदव्ति बनाई जिसमे योग्यतानुसार गुरुकुल से पढ़कर ब्राह्मण और अन्य को कार्यानुसार वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र का पद दिया गया।
सन्त श्री कमल किशोर ने कहा कि वेद कहते हैं कि हे मानव, तू अमृत पुत्र है,मानवता ही तेरा धर्म है अतः जाति का भेदभाव मिटाकर हमें प्रेम की सुगंध को चारों ओर फैलाना है क्योंकि प्रेम का उदय होते ही घृणा व लड़ाई झगड़े स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। भारतवर्ष को विश्वगुरु बनाना है तो जातिवाद के विष को समूल मिटाना होगा।दोनों संतों ने इस दिशा मिलकर कार्य करने का संकल्प लिया।
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