अग्निवीर मामले में भड़काऊ राजनीति अपने आप में गिरती राजनीति की पराकाष्ठा--राजेश आर्य
विरेन्द्र चौधरी
सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निवीर योजना के विरोध में कई राज्यों मै बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ के शर्मनाक सिलसिले के बीच कई विपक्षी दलों की ओर से जिस तरह इस योजना को वापस लेने पर जोर दिया जा रहा है....
वह एक तरह से आग में घी डालने वाला कृत्य है...? दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अग्निपथ योजना को वापस लेने की मांग करने वाले राजनीतिक दलों में कांग्रेसी सबसे आगे हैं...? जिसने देश की सत्ता पर लंबे समय तक शासन किया है....? और जो इस से अच्छी तरह अवगत हैं कि देश के सैन्य ढांचे में व्यापक बदलाव समय की मांग है....? क्या कांग्रेस को यह पता नहीं कि भारतीय सेना के तीनों अंग किन समस्याओं से दो-चार हैं...? और उनका प्राथमिकता के आधार पर समाधान करना कितना आवश्यक है.... यह समझ आता है कि अग्निवीर योजना के कुछ प्राविधानों में संशोधन परिवर्तन की मांग की जाए...? लेकिन इसका तो कोई मतलब ही नहीं कि उसे वापस लेने की ज़िद की जाए...? विपक्षी दल ऐसी जिद करके एक तरह से उन युवाओं को भड़काने का ही काम कर रहे हैं...? जो अराजकता का परिचय दे रहे हैं...? इससे भी खराब बात यह है इस खुली अराजकता के विरोध में कुछ कहने के बजाय किंतु परंतु के साथ युवाओं में अराजक व्यवहार को सही बताने की कोशिश करते दिख रहे हैं...? क्या इससे अधिक जिम्मेदाराना राजनीति और कोई हो सकती है...? एक ऐसे समय जब दुनिया के सभी प्रमुख देश अपनी सेनाओं की औसत आयु कम करने...? संख्याबल घटाने...? सेवा शर्तो में बदलाव करने...? वेतन पेंशन खर्चे में कटौती करने...? के साथ- उनका आधुनिकरण करने में लगे हुए हैं...? तब इसका कोई औचित्य नहीं..? कि भारत ऐसा कुछ ना करें..? और वह भी तब जब सुरक्षा के मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ती जा रही है...? यदि विपक्षी दल इन तथ्यों से अनजान बने रहने का दिखावा करना चाहते है...? की रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा सैनिकों के वेतन एवं पेंशन में खप जा रहा है...? और इसके चलते सेनाओं के आधुनिकरण का लक्ष्य पीछे छूटता जा रहा है....? तो इसका यही अर्थ निकलता है कि वे राष्ट्रहित से अधिक महत्व अपने सर्किण राजनीतिक स्वार्थ को दे रहे हैं....?
अब जब यह स्पष्ट है कि विपक्षी दल अग्नीपथ योजना के विरोध में उत्पात मचा रहे युवाओं की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं....? तब फिर सरकार को हालात संभालने के लिए और अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए...? इस क्रम में उसे यह भी दृढ़ता से प्रदर्शित करना होगा...? कि वह इस योजना में आवश्यक सुधार करने के लिए तो तैयार है...? और कर भी रही है...? लेकिन भीड़ तंत्र के आगे झुकने का कहीं कोई प्रश्न नहीं उठता...?
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