बेटे की बेवफाई पर चली DM की कलम••गिफ्ट डीड रद्द, बुजुर्ग दंपति को लौटाई संपत्ति

बेटे की बेवफाई पर चली DM की कलम••गिफ्ट डीड रद्द, बुजुर्ग दंपति को लौटाई संपत्ति



विरेन्द्र चौधरी,विनय कुमार
देहरादून।वो जो कभी बेटे के भविष्य की नींव थे, उन्हीं को बेटा जायदाद से बेदखल कर दे, तो सवाल सिर्फ कानून का नहीं, समाज की आत्मा का भी उठता है। लेकिन शुक्र है, हर सिस्टम में कुछ अफसर ऐसे भी होते हैं जो न्याय को सिर्फ फाइल में नहीं, इंसाफ की जमीन पर उतारते हैं।

देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल ने वही किया, जो शायद कानून की किताबों में दर्ज है, लेकिन अमल में कम ही आता है। एक पीड़ित बुजुर्ग दंपति—सरदार परमजीत सिंह और उनकी पत्नी अमरजीत कौर—ने जिस बेटे को स्नेहपूर्वक 3080 वर्ग फुट की संपत्ति गिफ्ट डीड में दी थी, उसी ने उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया। न केवल उन्हें बेदखल किया, बल्कि पोते-पोतियों से मिलने तक पर रोक लगा दी।

अब ये कहानी किसी टीवी धारावाहिक की नहीं, हकीकत की थी—जो तहसील, थाने और निचली अदालतों की चौखटों पर न्याय मांगती घूमती रही। लेकिन जब थक हारकर बुजुर्गों ने डीएम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो पहली ही सुनवाई में कलम चली, और न्याय मिल गया।

भरणपोषण अधिनियम की विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिलाधिकारी ने न केवल गिफ्ट डीड को रद्द किया, बल्कि सिर्फ तीन दिनों में आदेश को प्रभावी बनवा दिया।
रजिस्ट्री ऑफिस ने डीएम के आदेश पर तत्काल अनुपालन करते हुए संपत्ति पुनः बुजुर्ग दंपति के नाम कर दी।
ये सिर्फ एक आदेश नहीं था—ये कलम उस संवेदनहीन बेटे पर चली, जिसने अपने माता-पिता को “उपयोग के बाद निष्कासित” कर दिया था। गिफ्ट डीड की शर्तें साफ थीं—माता-पिता का भरण-पोषण, साथ रहना, और पोते-पोतियों का संबंध बनाए रखना। लेकिन जब बेटे ने इन शर्तों की नाफरमानी की, तो कानून की चौखट पर जवाब देना पड़ा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि जिम्मेदार प्रशासक यदि चाह लें, तो सिस्टम केवल न्याय की प्रतीक्षा नहीं करता, उसे लागू भी करता है।डीएम सविन बंसल की कार्यप्रणाली उन तमाम अफसरों के लिए मिसाल है जो कहते हैं हमें सीमाएं बांधती हैं।

न्यायालय में आदेश सुनते वक्त जब बुजुर्ग दंपति की आंखों से आंसू छलके, तो शायद वो आंसू उस सिस्टम के पुनर्जन्म के थे, जो कई बार खो गया लगता है। 
कहते हैं इंसाफ अंधा होता है, लेकिन जब उसमें संवेदना जुड़ जाए, तो वो देख भी सकता है और दिल भी छू जाता है।
बेटे की संपत्ति की भूख को, कानून की स्याही ने न्याय की लेखनी से मिटा दिया।

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