एक वीडियो इस वक्त पूरे देश में वायरल हो रहा है जिसमें ये दिखाया जा रहा है कि एक सवर्ण शिक्षक ने इसलिए दलित छात्र को पीट पीट कर मार दिया क्योंकि वो मटकी में रखा हुआ पानी पी रहा था । दलित छात्र की मौत हुई है और हम सभी लोग उस दलित परिवार के दुख में शामिल हैं लेकिन ये मौत छुआछूत की वजह से नहीं हुई है इस संदर्भ में मैंने स्वयं राजस्थान के कई पत्रकारों से बात की है जो जमीन की पत्रकारिता करते हैं हवा हवाई बातें नहीं करते ।
पूरा मामला क्या है ? हम आपको बताते हैं... सबसे बड़ी बात तो यही है कि दलित छात्र की पिटाई 20 जुलाई को हुई है और उसकी मौत 13 अगस्त को हुई है । यानी पिटाई के 23 दिन के बाद मौत हुई है । इस मामले में जांच कर ये पता लगाना चाहिए कि आखिर बच्चे की मौत की असल वजह क्या है ?
इस स्कूल के आधे पार्टनर भी एक जीनगर है ( जिन्हें दलित कह सकते है)। जिस स्कूल का आधा मालिक भी दलित हो वहाँ छुआछूत होना कतई सम्भव नही है। इस मिडिल स्कूल में कुल 6 शिक्षक है जिनमे से 5 शिक्षक भी कहने को दलित समाज से ( दो मेघवाल, दो भील व एक जीनगर) ही है।
उस दिन उस बच्चे के द्वारा बदमाशी करने गुरुजी ने दो दो थप्पड़ बदमाशी करने वाले सभी बच्चों के लगाए थे, अब संयोग से उस बच्चे के आंख या कान पर थप्पड़ उन गुरुजी का लगा या आपसी झगड़ रहे बच्चों का ही लगा।
बताए अनुसार यह लड़का काफी पहले से ही बीमार चल रहा था और शायद दिमागी नस ब्लॉक होगी एवं थप्पड़ से ज्यादा डेमेज हुई हो। यह डॉक्टर्स की रिपोर्ट में भी है। डॉक्टर्स की रिपोर्ट में भी किसी चोट से डेथ नही होकर दिमागी इंफेक्शन से डेथ होना लिखा गया है ( post infection thrombosis and due to infection)
पूरे मामले में सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात ये है कि वीडियो में ऊपर टॉप बैंड लगाकर राजपूतों को अपशब्द कहे जा रहे हैं और उसको पूरे देश में वायरल करवाया जा रहा है । पहली बात तो किसी एक राजपूत शिक्षक की गलती को पूरे जाति या समाज पर कैसे थोपा जा सकता है ? और दूसरी बात ये कि इस स्कूल के संचालकों में एक दलित भी है ।मेरी पत्रकारों से जो बात हुई उसके मुताबिक स्कूल में पढ़ने वाले 50 प्रतिशत छात्र दलित ही हैं ।
दलित चिंतकों की ब्रिगेड ने झूठी बात फैलाने के लिए जो वीडियो वायरल करवाया है उसमें ये भी लिखकर भेजा जा रहा है कि स्कूल में सवर्णों की मटकी से पानी पीने की वजह से ये पिटाई की गई है जबकि ये बात पूरी तरह से झूठी है स्कूल के बच्चों और वहां के लोगों का साफ कहना है कि स्कूल में कहीं कोई मटकी रखी ही नहीं थी । स्कूल में एक टंकी है और सब बच्चे उसी का पानी पीते हैं । आप खुद अपने दिमाग पर जोर लगाकर बताइए क्या मटकी से सैकड़ों बच्चों की प्यास बुझ सकती है ? जो वीडियो वायरल करवाया जा रहा है उसमें भी कहीं कोई मटकी देखने को नहीं मिली है ।
राजस्थान की पुलिस ने भी अपनी जांच में अब तक इसको जातिवाद या छुआछूत का मामला नहीं माना है। असलियत ये है कि टीचर ने बच्चे को इसलिए मारा क्योंकि बच्चों की आपस में ही लड़ाई हुई थी । हालांकी हमारा ये मानना है कि टीचर ने गलती की और उसको इतनी बर्बरता से आईएसआईएस की तरह उस बच्चे को नहीं मारना चाहिए था ।
दलित चिंतक जिस तरह से हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए चालबाजियां कर रहे हैं उससे आखिरकार दलितों का ही नुकसान होगा जिस तरह समाज ने मुसलमानों का बहिष्कार कर दिया है और उन्हें कोई किराये पर घर भी देना नहीं चाहता है उसी तरह से दलित चिंतक अपने कुकर्मों से समाज को इतना डरा देंगे कि लोग किसी दलित की मदद करने से भी डरेंगे । इसलिए दलित चिंतकों से निवेदन है कि दलित उद्धार और जातिवाद के विरोध पर हम सभी हिंदूवादी उनके साथ हैं लेकिन वो कृपया जातिवाद की खाई को और गहरा करने के लिए झूठे प्रचार ना करें ।
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