वेदों ,उपनिषदों ,गीता ,कृष्ण और राम साहित्य के पर्यावरण कानूनों के प्रति जागरूक करती हुई इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता को पर्यावरण की दृष्टि से विश्लेषित करती है।
वह थ्रोआउट फर्स्टक्लास रही हैं.आधुनिक हिन्दी साहित्य में पीएच.डी और मध्यकालीन हिन्दी में डी.लिट् हैं।पोस्ट डॉक्टरल में वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय से चयनित सीनियर फैलोशिप की शोधयोजना पूरी कर चुकी हैं जो प्रकाशनाधीन है।
मीरा गौतम को हरियाणा साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'सूर पुरस्कार,महिला सशक्तिकरण पुरस्कार और सूर शोधार्थी सम्मानों से नवाज़ा है। दुष्यंत -स्मृति, मीडिया पुरस्कार, कला रत्न पुरस्कार, स्वतंत्रता की अर्द्धशती पर साहित्यिक अवदान के लिए पुरस्कृत किया गया. उर्दू की उत्कृष्ट अदायगी के लिए क़तील शिफ़ाई ने उन्हें सम्मानित किया.'सूरस्मारक मंडल आगरा' ने उन्हें 'महाकवि सूरसम्मान' प्रदान किया. देश की विभिन्न सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाएं उन्हें निरन्तर सम्मानित कर रही हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों से उनका काव्यपाठ और वार्ताएं प्रसारित होती है।उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में उनका काव्यपाठ और सम्मान हुआ है।
मीरा गौतम का साहित्य क्षेत्र में योगदान
साहित्य की किसी भी विधा में लिखने के लिए एक अन्तर्दष्टि और एक विज़न की ज़रूरत होती है.अन्ततः साहित्य-सृजन समाज और अपने पाठकों के लिए होता है.यह ' निज ' से ' पर ' की यात्रा है जो अपनी दूरदृष्टि एवं गुणवत्ता के कारण वैश्विक हो जाती है।
मीरा भारत की बेटी हैं और हरियाणा में कार्यरत रही है। इसीलिए ,उनकी रचनाओं में देश की संस्कृति , उसकी जड़ों की अनुगूँज और समय की आहटें सुनायी देती हैं.
' समय रहेगा हाथ में ' काव्य-संग्रह की कविताओं में उनका यही स्वर प्रमुख है.अपनी कविताओं में स्वयं होकर भी वह मानवीय और सामाजिक संवेदनाओं से जुड़ती हैं.वह मानती हैं कि भारत एक समन्वित देश है.इसके लिए वह बाह्य विचारधाराओं से उनके उजले पक्ष से उतना ही लेती हैं जितना ज़रूरी है।अन्यथा ,साहित्य केवल प्रचार की वस्तु और एकांगी बनकर रह जाता है।
' मुझे गाने दो मल्हार.' काव्य-संग्रह की कविताएंँ इक्कीसवीं सदी के ज्वलंत मुद्दे पर्यावरण पर मूलतः केन्द्रित हैं. इसमें पर्यावरण के विभिन्न रूपों को बारीकी से देखा जा सकता है क्योंकि, पर्यावरण केवल प्रकृति नहीं है.हमारा समाज ,व्यवहार, जलवायु के मानव संस्कृति और भाषा के निर्माण के पारीस्थितिक प्रभावों का आकलन भी करता है। मीरा गौतम साहित्य-सृजन को रचनात्मक ज़िम्मेदारी मानती हैं और उनकी कविताएँ इस संग्रह में साक्षी दे रही हैं।
हरियाणा के कला एवं सांस्कृतिक विभाग से वह अभी सम्बद्ध हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी के महत्त्वपूर्ण कार्यों को करती हुई वे अत्यंत गौरवान्वित हैं।
वह निरन्तर साहित्यिक सेवा, लेखन , सेमिनार वेबिनार आदि में व्यस्त हैं।
' गाँव के मुहाने से निकली है बटिया ' बटिया अर्थात् पगडंडी काव्य - संग्रह की कविताएँ देश के गाँवों की बदलती संस्कृति , भाषा, व्यवहार ,चलन और इस सदी के बदल रहे चेहरे पर केन्द्रित हैं. शहरों की चकाचौंध से गाँव खाली हो रहे हैं, चौपालें सूनी हैं और आधुनिकता के प्रवेश ने सबकुछ बदल कर रख दिया है।
दो काव्य-संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। उनके लेख, ,शोध आलेख,कविताएँ ,समीक्षाएँ देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।देश के विभिन्न भागों में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनारों, वेबिनारों काव्य-संगोष्ठियों में वह बराबर शिरकत कर रही हैं।अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनारों में वह निरन्तर सक्रिय हैं.
संगीत क्षेत्र
मीरा गौतम की संगीत क्षेत्र में गहन रूचि है.उन्होंने किराना घराना में संगीत सीखा है। दूरदर्शंन और आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों पर उनकी संगीत प्रस्तुतियांँ हुई हैं।
देश के प्रतिष्ठित मंचों यथा उत्तर सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड,माता मनसा देवी बोर्ड,आकाशवाणी और लखनऊ, दूरदर्शन केन्द्र,दिल्ली आकाशवाणी और दूरदर्शन केन्द्र,जालंधर ,रोहतक,बनारस,चंडीगढ़ आकाशवाणी और दूरदर्शन केन्द्रों और देश के विभिन्न केन्द्रों पर प्रस्तुतियों का गौरव उन्हें प्राप्त है।दूरदर्शन केन्द्रों और देश के विभिन्न के विभिन्न सांगीतिक मंचों पर उनकी सफल प्रस्तुतियाँ इसकी गवाह हैं।
हिन्दी के अलावा पंजाबी, बंगाली, ब्रज, उड़िया,हिमाचली, उत्तराखंड, मराठी,उर्दू ग़ज़ल,राजस्थानी, तमिल ,तेलूगु, कन्नड, असमी आदि देश की बोलियों में मीरा गा सकती हैं.ग़ज़ल,गीत ,भजन आदि के गायन में मीरा को महारथ हासिल है।
जो परिचय यहाँ प्रस्तुत किया गया है उसे महासमुद्र की एक बूँद ही समझिये।फिलहाल मीरा साहित्य के एक नये प्रोजेक्ट में व्यस्त हैं।
रोशनलाल शर्मा,हाउस नम्बर- 119, ट्रिब्यून कॉलोनी ,गाज़ीपुर रोड, जीरकपुर, ज़िला मोहाली ,पंजाबपिन-140603
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