देश की जनसंख्या 1.4 अरब -- अरुषेंद्र शर्मा
केवल आर्थिक विकास नहीं बल्कि समग्र भारतीय विकास की अवधारणा को ध्यान में रख कर ही विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
विश्व के 2.4 % भूमि पर विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश।कुल पीने योग्य जल का भी लगभग 2.1% जल भारत में है।
चीन के पास भारत से लगभग तीन गुना भूमि है।
1.4 अरब की जनसंख्या आर्थिक विकास के पहिए तो बन सकते है,वह भी तब जब जनसंख्या का एक बड़ा भाग कौशल , तकनीकी विकास से युक्त हो,शिक्षा बेरोजगारी बढ़ाने वाली न होकर व्यवहारिक,रोजगार परक हो,लेकिन विकास की भारतीय दृष्टि के अभाव में यही जनसंख्या देश पर बोझ भी बन सकती है।
वो एक कहानी है न की एक राजा ने ईश्वर से वरदान मांगा की वह जिस वस्तु को भी छुए वह सोने की बन जाए।अंत में वह न रोटी खा पाता था, न पानी पी पाता था।इसलिए केवल आर्थिक विकास से काम न चलेगा।
हम हजारों वर्षो से खेती करते आए है,राजा जनक के भी खेत में हल चलाने का वर्णन मिलता है,लेकिन हमारी भूमि हमेशा उर्वरक , विषैले रसायनो से मुक्त रही जब तक कि हमने पाश्चात्य का अंधानुकरण कर पाश्चात्य तरीकों से खेती प्रारंभ ना कर दी ।
हजारों वर्षों से ही नदियां,पहाड़ वन आदि सभी शुद्ध, प्रदूषण रहित होकर फलते फूलते रहे और भारतीय जीवन ,जीवन मूल्यों, सभ्यता और संस्कृति के एक प्रमुख घटक भी रहे,यद्यपि बड़े और विशाल अट्टालिकाओं,भवनों राजपथो का भी भरपूर निर्माण किया गया था।
वर्तमान में जल ,जंगल ,जमीन मानवीय भार से प्रदूषित तो हो ही रहे है,साथ साथ मानव और प्राकृतिक संसाधनों,जिन पर मानव जीवन आधारित है,उसका अनुपात भी कम होता जा रहा है।इन सभी पक्षों पर भी ध्यान देना होगा।
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