भ्रष्टाचार को लेकर भावना मंगलामुखी का जबरदस्त लेख,पढ़ोगे तो सोचने को हो जाओगे मजबूर

 मेरा सपना : भ्रष्टाचार मुक्त हो भारत अपना••दोस्तों भ्रष्टाचार का संधि विच्छेद होता है_ भ्रष्ट + आचार••अर्थात् भ्रष्टाचार से अभिप्राय हुआ_ गिरा हुआ, नीच, पतित या गलत आचरण या व्यवहार


भावना मंगलामुखी 

 वैसे भ्रष्टाचार एक बहुत ही व्यापक संकल्पना है। इसमें व्यक्ति के अवांछित आर्थिक व्यवहार के साथ - साथ किसी के अवांछित व्यक्तिगत या सामाजिक व्यवहार को भी रखा जा सकता है। इस प्रकार किसी अधिकारी/ नेता द्वारा रिश्वत लेना या किसी व्यक्ति द्वारा उन्हें स्वयं रिश्वत की पेशकश करना, किसी के साथ अपने पद व गोपनीयता का दुरुपयोग करना, किसी का शोषण या उत्पीड़न करना, आर्थिक ठगी व धोखाधड़ी और मानवीय मूल्यों का ह्रास व पतन इत्यादि सम्मिलित है। लेकिन आजकल मोटे तौर पर इनमें से काफ़ी विषयों को भ्रष्टाचार से इतर स्वतंत्र रूप से देखा जाने लगा और आजकल इसमें रिश्वत के लेन - देन और आर्थिक घोटालों को ही प्रमुखता दी जाने लगी। आजकल भ्रष्टाचार भारत के साथ - साथ समस्त राष्ट्रों और संपूर्ण मानव जाति की एक बहुत बड़ी समस्या और विकास में बहुत बड़ी बाधा बन चुकी है। खासकर भारत में आज के समय में एक भी विभाग ऐसा नहीं होगा, जहां भ्रष्टाचार की शिकायत न हो। यह एक दीमक की भांति है, जो राष्ट्र को निरंतर खोखला किए जा रहा है। मैं तो भ्रष्टाचार की तुलना बकासुर से ही करती हूं।

भ्रष्टाचार के प्रकार : वैसे भ्रटाचार को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है लेकिन आधुनिक रूप से उसका सबसे बेहतर वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है_

(1) आर्थिक भ्रष्टाचार : इसमें किसी अधिकारी/व्यक्ति या समूह द्वारा की गई सीधे आर्थिक व्यवहार से जुड़ी गड़बड़ियों को रखा जा सकता है। इसमें रिश्वत लेना और देना, किसी वस्तु के परिमाण अर्थात नाप - तौल या गुणवत्ता के साथ अवांछित छेड़छाड़ या गड़बड़ करना, फर्जी शैल कंपनिया स्थापित और संचालित करना इत्यादि सम्मिलित है। शिकायतों की संख्या के आधार पर भारत में इस प्रकार का भ्रष्टाचार सबसे व्यापक हो चुका है।

(2) राजनैतिक भ्रष्टाचार : परिमाण के आधार पर यह भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा रूप है। इसमें विभिन्न राजनेताओं द्वारा विभिन्न योजनाओं की आड़ में बड़े - बड़े घोटालों को अंजाम देकर निजी लाभ लिया जाता है या उनके चहेते लोगों और सहयोगी मित्रों  को लाभ प्रदान किया जाता है।

(3) सामाजिक भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार के इस रूप में सामाजिक स्तर पर व्याप्त समाज की विभिन्न कुरीतियों, गलत प्रथाओं और प्रचलन जैसे दहेज लेना - देना, बेटियों के पैसे लेकर उन्हें बेचना, अवांछित होड़ाहोड़ वाली दिखावे बाजी, जातिवाद, भेदभाव, अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, कट्टरवाद, झूठ, जुमलेबाजी और अफ़वाह फैलाना इत्यादि को रखा जा सकता है।

(4) नैतिक भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार के इस प्रकार के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तिगत आचरण और अनुशासन व शिष्टाचार संबंधी विकारों को रखा जा सकता है। इसमें किसी दुर्बल व्यक्ति, महिला, बच्चों, माता - पिता, भाई - बहन, परिवार के वृद्ध सदस्यों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों के साथ दुर्व्यवहार तथा पराई स्त्री का शीलभंग करना इत्यादि करना सम्मिलित है।

(5) धार्मिक भ्रष्टाचार : चूंकि धर्म अपना कर्तव्य कर्म, जिम्मेदारी और अपेक्षित आचरण ही होता है लेकिन आजकल लोगों ने सिर्फ़ अपने संप्रदाय, अपनी रूढ़ीवादी परंपराओं और अपनी - अपनी पूजा पद्धतियों को ही धर्म समझना शुरू कर दिया जा है, तब से धर्म में भी वास्तविक ज्ञान - संस्कार और अपेक्षित आचरण को भुलाकर सिर्फ़ पाखंड और दिखावा बढ़ गया है। आजकल किसी भी सड़क के किनारे मंदिर, मजार के नाम पर कोई भी भी अपनी तथाकथित धर्म की दुकान खोलकर चलाने लगता है और प्रशासन भी उनको ही हाथ जोड़ने लग जाता है। धीरे - धीरे ट्रस्ट इत्यादि बनाकर वह लोगों को आर्थिक रूप से ठगने व मानसिक रूप से गुलाम बनाना शुरू कर देता है। त्यौहारों के नाम पर वर्गणी वसूलने वाले, फर्जी गौसेवकों के प्रमाण पत्र लेकर चंदा इकट्ठा करने वाले, कट्टरपंथियों या आतंकवादियों के लिए फंड जुटाने वाले सभी लोगो को धार्मिक भ्रष्टाचार के अंतर्गत रखा जा सकता है।

(6) स्त्री संबंधी/ लैंगिक भ्रष्टाचार : हालांकि स्त्री संबंधी भ्रष्टाचार को सामाजिक, नैतिक या धार्मिक भ्रष्टाचार के रूप में भी देखा जा सकता है लेकिन दुनिया की लगभग आधी आबादी जो सदियों तक तथाकथित हर धर्म/ संप्रदाय द्वारा उपेक्षित रखी गई। उनके कल्याण व उत्थान हेतु स्त्रियों संबंधी भ्रष्टाचार को अलग से वर्गीकृत करना आवश्यक हो जाता है। इसी प्रकार लैंगिक आधार पर भ्रष्टाचार के अंतर्गत तृतीयलिंगी समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव और भ्रष्टाचार को भी समझना और उसका स्थाई समाधान निकालना भी आज के समय की महत्ती आवश्यकता बन चुकी है।

भारत में भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण  निम्नलिखित है :-

(1) आस्था प्रधान भावना : चूंकि भारत सदियों से एक आस्था प्रधान देश रहा है। यहां यह तो मान्यता है कि सब कुछ भगवान देख रहा है लेकिन कुछ ऐसी भी मान्यताएं हैं जिनसे भ्रष्टाचार का पोषण व संरक्षण होता है। जैसे_

(अ) भगवान को खुश करके जाओ और परीक्षा में अच्छे अंक पाओ हालांकि आजकल बहुत से माता - पिता अपने बच्चों की शिक्षा पर तो ध्यान देने लगे हैं लेकिन फिर भी जब परीक्षा के वक्त वे बार - बार उक्त बात करते हैं, तब बच्चों के अपरिपक्व मन में कहीं न कहीं यह विश्वास दृढ़ होता जाता है कि भगवान भी रिश्वत लेकर ही सफलता प्रदान करता है। भगवान को रिश्वत न देने से अनिष्ठ का डर भी बना रहता है।

(ब) पाप करो और गंगा नहाओ वाली मान्यता से प्रेरित होकर कुछ लोग दो नंबर की काली कमाई करके मंदिर -  मस्जिद में दान देकर अपने पाप धोने का ढोंग करके बाज नहीं आते हैं और फिर भी लोग उनकी वाहवाही करने लग जाते हैं।

(3) नैतिक शिक्षा का अभाव : आजकल एक बात सिद्ध होती जा रही है कि भ्रष्टाचार सिर्फ शिक्षा की कमी से नहीं है अपितु नैतिक शिक्षा की कमी से है क्योंकि आजकल एक पढ़ा - लिखा अधिकारी रिश्वत मांग रहा है और एक पढ़ा - लिखा व्यक्ति ही उसे रिश्वत की पेशकश भी कर रहा है।

(3)शिक्षा का व्यवसायीकरण : आजकल शिक्षा के व्यवसायीकरण के कारण शिक्षा अर्थ केंद्रित और नैतिक शिक्षा विहीन हो चुकी है। साथ ही शिक्षा के अत्यधिक महंगी हो जाने से अगर कोई मान लो 10 - 15 लाख रुपए लगाकर डॉक्टर की डिग्री ले रहा है तो वह डॉक्टर कैसे किसी निर्धन, मजबूर, लाचार व्यक्ति का सेवाभावना से निशुल्क इलाज कर पाएगा?

(4) सरकारों का भ्रष्ट आचरण :आज तक जब सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भी राजनैतिक लोगों द्वारा ही किया गया और किया जा रहा है इसलिए उनमें भ्रष्टाचार से लड़ने और उसे समाप्त करने का नैतिक साहस ही नहीं बचा है। आखिर वे किस मुंह से भ्रष्टाचार को समाप्त करने का पक्का वादा कर सकते हैं? वे सिर्फ़ जुमलेबाजी कर जनता को बेवकूफ़ बना सकते हैं और आखिर भोली - भली जनता भी अगर बेवकूफ़ बनने में ही खुश रहती है तो भला कौन उनका क्या ही कर सकता है?

(5) जिम्मेदार लोगों की उदासीनता : जो लोग हर समस्या को गहराई से समझते हैं, वे भी बस अपनी व्यक्तिगत जिंदगी से ऊपर उठकर समाज व राष्ट्रहित के चिंतन और समाधान पर मुखर नहीं होते हैं। यहां तक कि आजकल तथाकथित जाने - माने और विद्वान समझे जाने वाले साहित्यकारों ने भी राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं पर टिप्पणी करने और उन समस्याओं से सरकारों को आईना दिखाने और जनता को जागरूक करने के अपने कर्तव्य कर्म से मुंह मोड़कर शासकों की शान में कसीदे पढ़ने लग गए, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए ये भ्रष्टाचार का दानव दिनोंदिन फूलकर तगड़ा होता जा रहा है।

(6)बेरोजगारी : बेरोजगारी के कारण जब किसी व्यक्ति को सुलभता से रोजगार प्राप्त नहीं होता, तब वह रिश्वत देकर या चापलूसी करके कोई नौकरी पाना चाहता है।

(7)पेपर लीक षड्यंत्र : आजकल हर बड़ी सरकारी भर्ती का पेपर पैसा लेकर लीक करवा दिया जाता है। जब तक ऐसे ठेकेदार हमारे बीच मौजूद रहेंगे तब तक भ्रष्टाचार समाप्त करने की चेष्टा करना कोरी कल्पना जैसा है।

(8) मौनी/मरणासन्न मीडिया : चूंकि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन आजकल उन्हें तो पौराणिक चारण - भाटों की तरह शासकों के गुणगान और दंडवत चरण वंदना से फुर्सत ही नहीं मिलती। देश का मीडिया अगर ठान ले तो देश से भ्रष्टाचार को पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है लेकिन ऐसा करे तब।

(9) लचर कानून व्यवस्था : भारत में भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण लचर व लाचार कानून व्यवस्था भी है। जब तक कोई बड़ा नेता राजनीति में होता है तब तक यहां राजनीति से प्रेरित कई बड़े - बड़े घोटालों की फाइलें कई सालों तक दबाकर रख दी जाती हैं या उन्हें जान -  क्लीनचिट भी दे दी जाती है।

भारत में भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव  इस प्रकार हैं :-

(1)मूल्यपरक शिक्षा :चूंकि शिक्षा ही सुधार का एकमात्र अहिंसात्मक माध्यम है इसलिए शिक्षा में अर्थ प्रधान व्यावसायिक शिक्षा के स्थान पर नैतिक शिक्षा को प्रोत्साहन देकर लोगों को मानसिक रूप से कट्टर ईमानदार बनाए जाए।

(2)रोजगार का विकेंद्रीकरण :आज भी भारत का GDP तो बढ़ रहा है लेकिन सिर्फ़ कुछ चुनिंदा लोग ही प्रगति कर रहे हैं। रोजगार का विकेंद्रीकरण करने से सभी को रोजगार के समान अवसर मिलेंगे फिर किसी को रिश्वत देकर नौकरी पाने की आवश्यकता ही नही होगी।

(3)पारदर्शी परीक्षाएं : आजकल लगभग हर बड़ी भर्ती का पेपर लीक हो रहा है। अगर ये पेपर लीक करने वाले षड्यंत्रकारी लोगों की पहचान करके सख्त कार्यवाही की जाए तभी भ्रष्टाचार पर एक अंकुश लग सकता है।

(4)न्याय प्रणाली में सुधार :  चूंकि भारत में भ्रष्टाचार संबंधी मामलों का निपटारा अदालतों द्वारा किया जाता है। इसलिए अदालतों की संख्या, जजों की संख्या, उनके कार्यों के घंटों और दिनों की संख्या को दुरुस्त किया जाना चाहिए। साथ ही प्रत्येक अपराध की के निपटारे की समयावधि भी निर्धारित की जानी चाहिए।

(5)भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो तथा न्यायपालिका को राजनैतिक प्रभाव से पूर्णतया स्वतंत्र रखा जाए।

(6)राजनैतिक एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने हेतु प्रत्येक सरकारी/ गैर -सरकारी विभाग में सभी प्रकार का लेन - देन एक निश्चित स्थान पर ही हो, जहां सीसीटीवी लगे हुए हो।

(7)साथ ही केश काउंटर के समक्ष यह भी लिखना अनिवार्य किया जाना चाहिए कि ___ "रसीद नहीं तो भुगतान नहीं।" भले कोई स्वयं अपराधी भी क्यों न हो क्योंकि जुर्माने की पावती प्राप्त करना उसका भी अधिकार है।

(8)किसी भी विभाग से संबंधित विभिन्न मदो में भुगतान / जुर्माने की दरें भी सार्वजनिक रूप से दर्शाई जाए।

(9)जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा अपने अधीनस्थ विभागों का निरीक्षण बिना किसी स्वागत - सत्कार की अभिलाषा के और बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक किया जाए।

(10)जिम्मेदार लोगों के लिए सख्त सजा का प्रावधान : अगर कोई जिम्मेदार व्यक्तिगत रूप से दोषी पाया जाता है तो उनके लिए आम लोगों से कई गुना अधिक कठोर सज़ा एवं उच्च ब्याज दर सहित वसूली/ संपति जब्त करने का प्रावधान हो।

(11)भ्रष्टाचार साबित हुए नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी हो। तथा सरकारी अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होने पर उन्हें नौकरी से निष्कासित किया जाए।

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