सभी सामाजिक और राजनीतिक संगठनों को मंगलामुखी समाज के हितों की आवाज उठाना सबसे बड़ा राजधर्म होगा। जो लोग दमन, शोषण की बात करते हैं उन्हें सबसे ज्यादा शोषित मंगलामुखी समाज की बात उठानी चाहिए।ताकि वो भी समाज से अलग थलग ना रहकर सम्मानित और सामाजिक जीवन जी सकें। सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों को चाहिए कि वो अपनी अपनी कमेटियों में मंगलामुखियों को उचित स्थान दे। विरेन्द्र चौधरी पत्रकार
भावना मंगलामुखी के उदगार भावना की कलम से
मैं भावना मंगलमुखी (साहित्यकार, सामाजिक चिंतक, मार्गदर्शक, प्रोत्साहक व सदस्य - अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, मुंबई) आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाह रही हूं कि हमारे देश को आजाद हुए अब पचहत्तर वर्ष हो चुके है। बीते एक वर्ष से देश के विभिन्न शहरों और कस्बों में आजादी का अमृत महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। अब तो हम चांद पर भी पहुंच चुके हैं।
लेकिन हमारे बीच में ही विद्यमान तृतीयपंथी (ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोगों को अपनी पहचान पाने में ही छियासाठ साल लग गए। आजतक हमारे अस्तित्व को किसी पाठ्यक्रम में पढ़ाया ही नहीं गया ! पहली बार 15 अप्रैल 2013 को ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले द्वारा हमें हमारी औपचारिक पहचान और मतदान का अधिकार मिल पाया !
चूंकि मतदान का अधिकार मिलने के कारण अब नेताओं को भी हमारी अहमियत का अहसास होने लगा हैं और वे अब हमारे लिए भी सुविधाओं की बात करने लगे हैं फिर भी आज भी हमारे में से अधिकांश साथियों के पास पर्याप्त पहचान पत्र न होने के कारण हमें सरकार और शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
आज भी समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा हमें एक पृथकतावादी हीन दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। आज भी हमें अच्छी बस्तियों में किराए पर घर ढूंढने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं।
रोजगार आज भी हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती व समस्या है। काम करने की सलाह हर कोई देता है लेकिन काम पर रखना कोई नहीं चाहता !
पहले हम हमारा जीवनयापन मांगकर भी कर लेते थे लेकिन आजकल अधिकांश सक्षम लोग तो स्वार्थी और दयाविहीन हो चुके हैं वहीं अधिकांश दयावान और मानवतावादी दृष्टिकोण रखने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति तो हमारे से भी दयनीय प्रतीत हो रही है, वे चाहकर भी किसी की सहायता कर पाने में असमर्थ हो चुके हैं।
हमारे कुछ लोग जैसे - तैसे ट्रेनों से गुजारा कर रहे हैं, वहां भी पुलिस वाले बेहिसाब हफ्ते मांगते और वसूलते हैं और बदनाम सिर्फ़ हमारे लोग होते हैं।
इसलिए मुझे लगता है कि अब हमें सिर्फ़ छोटी - मोटी सुविधाओं से संतोष न करके पढ़ - लिखकर शासन - प्रशासन में भी अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए।
महोदया चूंकि हम संपूर्ण देश के विभिन्न हिस्सों में थोड़ी - थोड़ी संख्या में बिखरे हुए हैं इसलिए चुनाव द्वारा हमारा प्रतिनिधि चुना जाना तो दिन में सपने देखने जैसा ही है।
अतः आपसे सविनय अनुरोध है कि जैसे अपने देश में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत की जाने वाली राज्यसभा की कुल बारह में से दो सीटें एंग्लो इंडियंस के लिए भी आरक्षित है वैसे ही नए परिसीमन के पश्चात सांसदों की संख्या संशोधित करते समय अपने ही देश के सदियों से उपेक्षित लाखों की संख्या में विद्यमान व राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग - थलग तृतीयपंथी व दिव्यांगजनोंं के कल्याण - हितार्थ कम से कम दो - दो सीटें मनोनयन के माध्यम से सुनिश्चित करने का प्रस्ताव पारित किया जाए।
तृतीयपंथी समुदाय हितार्थ कुछ अन्य सुझाव निम्नलिखित है_
*कम से कम दस्तावेजों या सिर्फ़ शारीरिक मानसिक स्थिति परीक्षण द्वारा समस्त तृतीयपंथी लोगों को एक तृतीयपंथी पहचान पत्र प्राथमिकता से प्रदान किया जाए और सिर्फ़ उसे ही सभी जगह वैध माना जाए।
*जनगणना में तृतीयपंथी विकल्प जोड़कर उनकी वास्तविक संख्या रजिस्टर की जाए।
*माध्यमिक स्तर पर तृतीयपंथी की अवधारणा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
डॉक्टरों, पुलिस और शिक्षकों को तृतीयपंथी के संदर्भ में यथार्थ व मानवीय दृष्टिकोण संगत प्रशिक्षण दिया जाए।
*न्यूनतम दस्तावेजों (सिर्फ़ तृतीयपंथी पहचान पत्र) के आधार पर सभी के बैंक खाते खुलवाएं जाए।
*तृतीयपंथी कल्याणार्थ अर्थ सहायता किसी स्वयंसेवी संस्था को देने के बजाय सीधे सबके खाते में हस्तांतरित की जाए।
*तृतीयपंथी को आवास योजना का लाभ अनिवार्य रूप से प्राथमिकता से प्रदान किया जाए।
*आगे अध्ययन जारी रखने हेतु इच्छुक तृतीयपंथियों के लिए पुरानी दस्तावेजी त्रुटियां नजरंदाज की जाए या बिना पुराने दस्तावेजों की मांग किए अपेक्षित संशोधन किए जाए तथा उन्हें छात्रवृति भी प्रदान की जाए।
*आरक्षण की समस्त श्रेणियों में कम से कम 1% तृतीयपंथी हेतु समांतर आरक्षण की व्यवस्था की जाए।
*तृतीयपंथी हेतु नौकरियों में आयु, योग्यता व शारीरिक मापदंड संबंधी कुछ छूट दी जाए।
*जो तृतीयपंथी अपना स्वरोजगार स्थापित करना चाहे उसे बिना किसी शर्त के न्यूनतम ब्याज दर पर लोन सुलभ करवाया जाए।
*बड़े शहरों में सुलभ सुविधाओं में तृतीयपंथियों हेतु विशेष प्रबंध किए जाए।
*निराश्रित बुजुर्ग तृतीयपंथियों हेतु वृद्धाश्रम इत्यादि की सुविधा की जाए।
*बड़े शहरों में तृतीयपंथी समुदाय हेतु पृथक श्मशान भूमि आवंटित की जाए।
*जाति धर्म के भेदभाव उन्मूलन हेतु तृतीयपंथी समुदाय को आदर्श घोषित किया जाए तथा उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
महोदया ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं सारी जिम्मेदारी सरकार के सिर मढ़ते हुए सारे सुझाव भी सिर्फ़ सरकार को ही दूं।
मेरे कुछ सुझाव मेरे अपने तृतीयपंथी समुदाय से भी है, वे इस प्रकार है_
*रूढ़िवादिता का त्याग करे और परिवर्तनशील समयानुसार नवीन परिवर्तनों को भी स्वीकार करे।
*नखरे, नशे व अंधविश्वास में परिश्रम से अर्जित पूंजी व्यर्थ ही बर्बाद न करे।
*अकर्मी - आवारा लोगों के झूठे प्रेमजाल में फंसकर अपना सर्वस्व न्यौछावर न करे।
*भविष्य हेतु बचत पर ध्यान दे।
*हीन भावना और नकारात्मक विचारों का त्याग करे।
*सदैव सृजनात्मक बने रहे तथा अपने आपको सदैव अच्छे और परोपकारी कार्यों में व्यस्त रखे क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है।
*अगर मांगना भी पड़े तो गाली देने के बजाय प्रेम से मांगे क्योंकि लोग हमारी शक्ल से नहीं अपितु दुर्व्यवहार से नफ़रत करते हैं।
*मृत्यु पश्चात की चिंता त्याग वर्तमान को सम्मान व स्वाभिमान से जीने हेतु चिंतन करते हुए आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करे।
समस्त तृतीयपंथी अपने नाम के साथ हमारे लिए सर्वाधिक सुसभ्य शब्द *मंगलमुखी* अर्थात 'शुभ वाणी उद्घोषक' उपनाम लगाएं, जिससे हम सबकी एकता व एकरूपता प्रदर्शित हो।
*राजनीति और सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखे और जागरूक बने क्योंकि उदासीन रहने से हम उनके शिकार हो जाते है और हमारे शोषण की संभावनाएं बढ़ जाती है।
महोदया अंत में मैं आशा करती हूं कि आप एक सुशिक्षित, सक्षम व जिम्मेदार महिला होने नाते आप मेरे सुझावों को सकारात्मकता पूर्वक विचार - विमर्श द्वारा अमल में लाने हेतु अपना यथासंभव प्रयास अवश्य करेगी।
इसी अपेक्षा के साथ संपूर्ण समाज सहित शोषित भावना मंगलामुखी
Comments
Post a Comment