माँ शाकम्भरी ही उमा, गौरी, सती, चंडी, कालिका और पार्वती हैं •• महामंडलेश्वर संत कमल किशोर

 पूजा अर्चन कर माँ दुर्गा के रूप माँ शाकम्भरी का प्राकट्य दिवस मनाया •• अकाल में शाकभाजी,फूल,पल्लव, मूल,और फलों से की थी पृथ्वी के जीवों की रक्षा--आचार्य महामंडलेश्वर संत कमलकिशोर  

क्षुधा,तृषा और मृत्यु के भय को नष्ट करने वाली हैं माँ शाकम्भरी---महामंडलेश्वर अनिल कोदण्ड  

विरेन्द्र चौधरी/वीरेंद्र भारद्वाज 

Saharanpur। शुक्ल पक्ष की पौष पूर्णिमा (शाकम्भरी पूर्णिमा),पुनर्वसु नक्षत्र में माँ शाकम्भरी का प्राकट्य दिवस आज दिव्य शक्ति अखाड़ा द्वारा दिल्ली रोड,परवाना विहार मे विधि- विधान, पूजा अर्चन कर मनाया गया। आचार्य महामंडलेश्वर संत कमलकिशोर जी महाराज ने दुर्गा सप्तशती के श्लोकों की व्याख्या करते हुए बताया कि माँ शाकम्भरी ही उमा, गौरी, सती, चंडी, कालिका और पार्वती हैं। उन्होने कहा कि लोग अज्ञान वश माँ का नाम शाकुंबरी या शाकंबरी बोलते हैं,जो गलत है। माँ का सही नाम माता शाकम्भरी है अतः सभी भक्तों से निवेदन है कि माँ के नाम का शुद्ध उच्चारण करें और शुद्ध ही लिखें। कमल में निवास करने वाली, शरीर की कांति नीले रंग की, नीलकमल नयन, शोक से रहित, दुष्टों का दमन करने वाली तथा पाप और विपत्ति को नष्ट करने वाली माँ शाकम्भरी का जो मनुष्य स्तुति, ध्यान, जप, पूजा और वंदन करता है वह शीघ्र ही सभी सुखों से सम्पन्न होकर अमित अक्षय फल का भोग करता है।
महामंडलेश्वर अनिल कोदण्ड जी ने बताया कि जब पृथ्वी पर अनेक वर्षों तक वर्षा न होने होने से भयंकर अकाल पड़ा,तब माँ के भक्तों द्वारा स्तुति करने पर माँ ने अपने शत नेत्रों से जल की धारा बहाकर पृथ्वी पर शाक-भाजी,फूल,पल्लव, मूल,और फलों की उत्पत्ति कर पृथ्वी के जीवों की रक्षाकी जिससे माँ का नाम शताक्षी और माँ शाकम्भरी पड़ा। माता शाकम्भरी ही सहारनपुर में शिवालिक की पहाड़ियों में माँ शताक्षी और माँ दुर्गा के रूप मे विराजमान हैं। यह पीठ एक अति प्राचीन एवं सिद्ध पीठ है जहां श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ माता पूर्ण करती है।
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पूजा और अनुष्ठान सुप्रसिद्ध भागवत कथावाचक पंडित उद्धव जी ने करवाया।सभी भक्तों को शाक भाजी और फलों का प्रसाद वितरित किया गया। सुरेश निझावन, श्रीमती अनीता, श्रीमती सुमन सैनी, शीला कुमारी,ओंकार मिश्रा,अंकित शर्मा,कंवल नयन शर्मा,राम वशिष्ठ,गिरधारी लाल तथा अन्य कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।


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