बांटेंगे रतन, बेचेंगे वतन ? ••अब एम एस पी से परहेज़ कैसा और क्यों ? •• किसानों के आंदोलित होने का जिम्मेदार कौन ? भारत रतन से काम चल जाता तो किसान आंदोलित नही होता।
अरविन्द नैब
सहारनपुर। समाजवादी दर्शन के साथ और किसानों कमेरो के उन्नयन हेतु जीवन पर्यंत रचनात्मक प्रयास करने वाले भारत के पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह सहित एम एस स्वामीनाथन को भारत रतन दिए जाने का यूं तो स्वागत हो रहा है लेकिन इसके साथ ही अनेकों ऐसे सवाल भी खड़े हो गए हैं जिनका जवाब सत्ता के अहंकार को नही सूझ रहा है।
एमएस स्वामिनाथन ने देश भर में किसानों की हो रही आत्म हत्याओं को देखते हुए सरकार द्वारा गठित आयोग के माध्यम से किसानों के आर्थिक उन्नयन हेतु जो फार्मूला सुझाया गया था उसमें किसानों की लागत बिजली, पानी, खाद, बीज दवाई पर होने वाले खर्च की लागत के साथ ही 50 प्रतिशत लाभकारी मूल्य दिए जाने को सरकार लागू नही कर पाई जिसके लिए पूर्व में प्रायः भंडारण करने की क्षमता नही होना बता कर पल्ला झाड़ लिया जाता था, जिसे समझते हुए ही जब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बनने के लिए सतत संघर्षशील थे तब वह भी एम एस पी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देने के न केवल पक्षधर थे, बल्कि मुखर थे।
वर्ष 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में तो इसे प्रमुख रूप से मुखर किया गया, जिसके चलते ही शहरी पार्टी समझी जाने वाली भाजपा संघ के माध्यम से गांव में भी प्रवेश कर गयी और देखते ही देखते उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में सत्तासीन भी हो गयी। किसानों के हित मे लिए जाने वाले फैसले की वो घड़ी भी आई जब किसानों को जवाब देना था, तब तीन कृषि कानून बना कर किसानों को वैसे ही बरगलाने के प्रयास हुए जैसे नोटबन्दी के समय देश की जनता के साथ हुए थे। किसान अपनी मांगों को लेकर मुखर हुए तो सत्ता के अहंकार को ये न ही तो स्वीकार्य ही था और समझ भी नही थी कि गैर संयोजित किसान इकट्ठा होकर इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर देगा और सरकार को कानून वापिस लेने के लिये मजबूर होना पड़ेगा जिसमे लगभग 700 किसानों की शहादत के साथ ही केंद्रीय मंत्री का बेटा किसानों को कुचल कर मारने के अपराध में गिरफ्तार होगा वो भी आंदोलन के बाद और मंत्री पद भी वापिस नही लिया जाएगा। किसानों को बदनाम करने के लिए प्रोपगंडा भी अपनाया जाएगा लेकिन उससे भी किसान विचलित नही होंगे। आखिरकार सरकार को न केवल किसानों के सामने झुकना पड़ा बल्कि उनकी मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन भी देना पड़ा।
अब जबकि सरकार पुनः चुनाव के मुहाने पर खड़ी है तब ऐसे में किसान फिर आंदोलित है और किसानों को दिल्ली में प्रवेश से रोकने के लिए भाजपा शासित राज्य सरकारें दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए अवरोधक लगाए हुए है और ड्रोन से आंसू गैस के गोले दागे जा रहे है, यहां तक कि गुरदासपुर के एक किसान की ह्र्दयगति रुकने से मृत्यु भी आंदोलन के दौरान हो चुकी है। ऐसे में सरकार द्वारा नियमो के विरुद्ध 3 के स्थान पर पांच महत्वपूर्ण लोगो को भारत रतन दिए जाने के पीछे उसके राजनीतिक हितार्थ निकाले जाना भी स्वाभाविक ही है। चौधरी चरण सिंह जी के सम्बंध में तो किसान कमेरा और जन सामान्य उन्हें भारत रतन से भी बड़े व्यक्तित्व के रूप में देखता है क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता कभी नही किया और नेहरू जी के पीएम रहते हुए ही कांग्रेस को छोड़ने में भी देरी नही की। जिन स्वामिनाथन की सिफारिशों को लागू करने की वकालत करते रहे अब उन्हें लागू नही किये जाने पर किसानों का रोष और आक्रोश स्वाभाविक रूप से चरम पर है। इससे पूर्व भी चौधरी चरण सिंह जी की राजनीतिक विरासत संभालने वाले चौधरी अजित सिंह जहां कांग्रेस गठबंधन से चुनाव जीतकर भाजपा के पाले में जाकर मंत्री बने थे और उसका ही परिणाम ये रहा कि उन्हें चुनाव जीतने के भी लाले पड़ गए अब जबकि जयंत चौधरी उस विरासत को संभाले हुए है और सपा गठबंधन के साथ ही वह लोक सभा के स्थान पर राज्यसभा में पहुंच पाए और अंततः भाजपा के एनडीए का हिस्सा बनने की तैयारी में है तो किसान भी समझ रहे है कि भारत रतन के नाम पर किसानों को किस तरह अपने पक्ष में करने के प्रयास किये जा रहे है तभी तो किसान ये कहने को मजबूर हुए है कि बांटेंगे रतन और बेचेंगे वतन, जिसके लिए राजनीतिक दल तो समझौता कर सकते है लेकिन किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए किसी भी झांसे में आने को तैयार नही है। प्रायः चौधरी चरण सिंह जी की सियासी पकड़ 8 राज्यों में मानी जाती रही है और भाजपा यहां रालोद को कुछ सीटे देकर उनका अन्य राज्यों में भी लाभ लेने की कोशिश कर रही है और वर्तमान की राजनीति में इसे बुरा भी नही माना जाता है। ऐसा ही लाभ उठाने के लिए बिहार में शोषितों, वंचितों और पिछड़ों के मसीहा रहे समाजवादी कर्पूरी ठाकुर को भारत रतन देकर पिछड़ों, शोषितों,वंचितों को अपने पक्ष में करने के सियासी प्रयास भाजपा द्वारा किया जाना कितना उपयोगी एवम लाभकारी होगा, ये तो अभी वक्त के गर्भ में है लेकिन वर्तमान में जिस तरह किसान आंदोलित है और सत्ता से सीधा संघर्ष करने के लिए तैयार दिखाई दे रहा है उससे ऊंट को अपने पक्ष की करवट बैठाने में सरकार को ही पहल करनी है। भारत रतन से काम चल जाता तो किसान आंदोलित नही होता।
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