चौधरी बंधु: इकरा का इकरार और इमरान को इंकार से साबित गठबंधन वोट कटवा, बीएसपी के माजिद अली मजबूत - भाजपा की जीत ही इमरान मसूद की जीत



पत्रकार इन्तखाब आजाद

     विशेष - मेरा यह विश्लेषण  मेरठ से प्रकाशित अमर उजाला  समाचार पत्र के पृष्ठ नंबर 04 पर दिनांक 5 अप्रैल 2024 को प्रकाशित खबर के आधार पर है।

सहारनपुर। अपने आगे किसी को कुछ ना समझना, उनके गलत निर्णय,ईमानदारी से किसी एक पार्टी में ना टिकना और बार-बार दल बदलना, गठबंधन प्रत्याशी इमरान मसूद के लिए मुसीबत बनकर खड़ा हो गया है। पहले मुस्लिम गुर्जर समाज के बेहद ईमानदार, संघर्षील जिलाध्यक्ष मुजफ्फर अली गुर्जर हटवाना, इमरान मसूद की वजह से संजय गर्ग का भाजपा में चले जाना,सपा से मौहम्मद हुसैन जिलानी,पूर्व जिलाध्यक्ष मजाहिर हसन मुखिया का अलग हो जाना, फिरोज आफताब का कांग्रेस से किनारा कर बसपा के माजिद अली को खुला समर्थन कर मंचों को संभालना और हाल ही में चौधरी परिवार की खुली बगावत, लखनऊ से जेट विमान भेज कर अखिलेश यादव का चौधरी बंधुओं को बुलाना और वहां वार्ता के बाद विधायक आशु मलिक की मौजूदगी में चौधरी बंधुओं की प्रेस वार्ता में इकरा का इकरार और गठबंधन प्रत्याशी को  इमरान मसूद को बेखौफ खुली नसीहत इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब सपा पार्टी हाईकमान और कांग्रेस के ही अधिकतर नेता इमरान मसूद को फूटी आंख भी नहीं देखना चाहते और वो भी समझ गए हैं कि उन्होंने जोड़-तोड़ कर टिकट भले हथिया लिया हो, मगर वो भाजपा को हराने की ताकत खो चुके हैं और अब बसपा के माजिद अली ही एक मात्र वो सहारा है, जो भाजपा को सहारनपुर से हराकर 2019 के लोकसभा चुनाव का इतिहास दौहरा सकते हैं।

■ आप मामले की गंभीरता को समझें और चौधरी बंधुओं की बगावत का अध्ययन करें। एक भाई चौधरी रूद्रसेन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और दूसरे चौधरी इन्द्रसेन गंगोह विधानसभा के प्रभारी, खुली बगावत और इस्तीफा। पार्टी हाई कमान अखिलेश यादव का तुरंत संज्ञान तथा जेट विमान सहारनपुर भेज कर चौधरी बंधुओं को लखनऊ बुलाना, गंभीर विचार मंथन, चौधरी बंधुओं की मान मनव्वल और फिर सपा विधायक आशु मलिक की मौजूदगी में प्रेस वार्ता तथा उसमें गठबंधन प्रत्याशी को खुली नसीहत और खुले मंच से प्रेस वार्ता में यह कहना कि मसूद परिवार की है विभाजनकारी सोच अपने आप में बहुत कुछ कहा गया है। इस सारे घटनाक्रम का निष्कर्ष यह है कि अखिलेश यादव को लेकर जो बद जुबानी गठबंधन प्रत्याशी इमरान मसूद ने की थी उसको अखिलेश यादव भूले नहीं है और उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को भी इमरान मसूद की बद जुबानी को लेकर उन्हें समझा लिया है। इसीलिए चौधरी बंधुओ ने चरण में इकरा हसन को तो अपनी बेटी माना है मगर इमरान को किसी तरह का कोई समर्थन नहीं दिया है। चौधरी परिवार की अपनी एक साख है और उनकी एक नीति भी है कि जिसको एक बार अपना मान लिया, उसके साथ गद्दारी नहीं और जिसका विरोध करना ठान लिया फिर उसके साथ किसी तरह की कोई यारी नहीं, यानी चौधरी परिवार अपनी नीति और नियत साफ रखता है। अब मामला स्पष्ट है कि जिले में भाजपा और बसपा के माजिद अली सीधी टक्कर में है और 2019 की तरह यदि मतदाताओं ने थोड़ा भी अकल से काम ले लिया और गठबंधन के चक्कर में नहीं पड़े, तो बसपा के माजिद अली की जीत पक्की है क्योंकि 2014 में तमाम मुसलमानो ने एक तरफा इमरान मसूद को वोट दिया मगर वह चुनाव हार गए। 2019 में अकल से कम लिया, तो दलित मुस्लिम गठबंधन जीत का सबब बन गया यानी अब इमरान मसूद सिर्फ वोट काट सकते है जीत हासिल नहीं कर सकते। जीत हासिल वही करेगा, जिसके पास प्लस वोट होगा और वो बस बसपा के माजिद अली के पास है।

■ इमरान मसूद भी सियासत में बच्चे नहीं हैं बेहद होशियार और समझदार हैं, वो जान रहे  हैं, कि वो जीतना तो बहुत बडी बात है, वो लोकसभा चुनाव 2019 की तरह इस बार भी फाइट मे नहीं है, मगर उनकी सोच यह है कि पहले हाजी फजलुर्रहमान चुनाव जीत गए थे उसके बाद पिछड़े वर्ग से आशु मलिक विधायक बन गए यदि इस बार फिर दलित मुस्लिम समीकरण पर बसपा के माजिद अली सांसद बन गए, तो उनकी (इमरान मसूद) भविष्य में नौटंकी बंद हो जाएगी और वो ऐसा मन कर चल रहे हैं कि भाजपा की जीत ही इमरान मसूद की जीत है। बरहाल कुल मिलाकर सपा के तमाम बड़े नेताओं का समर्थन पर्दे के पीछे बसपा के माजिद अली को है जो सपा का एक जनप्रतिनिधि और पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री इमरान मसूद के साथ घूम रहे हैं उनके अपने प्रॉपर्टी के धंधे हैं उनकी अपनी कुछ मजबूरियां हैं मगर उन्हें भी याद रखना चाहिए कि अगर वो भविष्य में चुनाव लड़ेंगे, तो उन्हें वोट पिछडा वर्ग का ही चाहिए, इमरान मसूद या उनकी जाति का वोट वहां पर नहीं है।

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