भावना मंगलमुखी की महाराष्ट्र स्पेशल सनसनीखेज रिपोर्ट •• महाराष्ट्र में महायुति की सुनामी या केंचुआ का महावोटाला ?

 भावना मंगलमुखी की महाराष्ट्र स्पेशल सनसनीखेज रिपोर्ट •• महाराष्ट्र में महायुति की सुनामी या केंचुआ का महावोटाला ?


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Virendra Chaudhry 

मुंबई। साथियों नवंबर माह में ही महाराष्ट्र और झारखंड राज्य की विधानसभा और देश के लगभग आठ राज्यों में विधानसभा उपचुनावों के साथ नांदेड़ व वायनाड की लोकसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव संपन्न हुए और इन सभी की मतगणना 23 नवंबर को की गई।

हालांकि एक स्थापित धारणा के मुताबिक अधिकांश राज्यों के उपचुनावों में राज्य का सत्ताधारी दल जैसे कर्नाटक में कांग्रेस, बंगाल में तृणमूल, बिहार में जेडीयू, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में बीजेपी, पंजाब में आम आदमी पार्टी अधिकांश सीटों को जीतने में कामयाब रहे लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के आंकड़ों (बीजेपी अकेले 132, शिंदे सेना 57, अजित पवार 41 महायुति कुल 230 तो उद्धव सेना 20, कांग्रेस 16, शरद पवार 10, महाविकास आघाड़ी कुल 46 तथा अन्य 12) ने हर किसी पत्रकार, चुनावी विश्लेषक और किसी भी पार्टी के समर्थकों को भी हैरान व आश्चर्यचकित कर दिया। 

चूंकि मैं स्वयं एक किन्नर हूं। मैं मेरे जीवनयापन के लिए अलग - अलग जगहों पर जाती हूं, कई लोगों से बातचीत भी करती हूं और खासकर दिवाली से पंद्रह दिन पूर्व से मतदान के दिन तक मैंने मतदाताओं के मूड को भांपने का खूब प्रयास किया और पाया था कि -- 

* बीजेपी के मतदाता एकनाथ शिंदे की शिवसेना के उम्मीदवार के पक्ष में तो खड़े नज़र आते थे लेकिन अजित पवार को अभी भी भ्रष्टाचारी बताते थे और उनके चुनाव पश्चात महाविकास आघाड़ी की तरफ़ चले जाने की आशंका भी जता रहे थे।

* लाड़की बहिन योजना के बारे में पूछने पर जहां बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक में उत्साह था वहीं कम से कम वंचित समाज और ग्रामीण इलाकों के लोग तो गैस सिलेंडर, खाने के तेल के दाम बढ़ने और कपास व सोयाबीन के भाव की बात करते थे।

* बीजेपी के कट्टर मतदाता भी बताते थे कि बहुमत भले किसी भी गठबंधन को मिले लेकिन सरकार महायुति की ही बनेगी।

* जब आज भी नतीजों की विश्वसनीयता पर भी मैं लोगों की राय जानने का प्रयास कर रही हूं तो बीजेपी के कट्टर मतदाता भी यह बात स्वीकार करते हैं कि उन्हें विश्वास था कि सरकार महायुति की बनेगी लेकिन इतनी सीटें मिल जाएगी, ऐसी उम्मीद तो उन्हें भी नहीं थी।

* खुद अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस ने अपने इंटरव्यू के दौरान 160 से 170 सीटें जीतने का ही दावा किया था।

* हालांकि मैं भी हर चुनाव में मेरा चुनावी आंकलन करती हूं और मेरे आंकलन के मुताबिक मुझे बीजेपी करीब 80, एकनाथ शिंदे करीब 40 और अजित पवार की एनसीपी मात्र एक दर्जनभर सीटों के साथ महायुति 130 - 135 सीटों पर तो कांग्रेस भी करीब 60, शरद पवार 40 और उद्धव ठाकरे लगभग तीन दर्जन सीटों के साथ महाविकास आघाड़ी भी लगभग 130 - 135 के आसपास नज़र नज़र आते थे। 20 - 22 सीटों पर निर्दलीय भी काफ़ी मजबूत थे। दोनों ही गठबंधनों को लगभग 40 - 41 प्रतिशत व करीब 18 प्रतिशत अन्य छोटे दलों व निर्दलीय के खाते में जाने का आंकलन था। इसलिए मेरा अनुमान था कि ईडी - सीबीआई की मदद व निर्दलियों के सहयोग से महायुति की ही सरकार बनेगी।

* एक बात मैं स्पष्ट कर दूं कि हरियाणा चुनाव पूर्व तक मैं कभी भी ईवीएम मशीनों पर संदेह नहीं करती थी और मैं इसे विपक्ष द्वारा अपनी नाकामियों को छिपाने का बहाना मानती थी। हालांकि पहली बार मुझे लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ाने को लेकर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह हुआ था फिर भी हरियाणा में भी यह सोचकर संतोष कर लिया कि हरियाणा में तो लोकसभा की सीटें भी बराबर - बराबर ही मिली थी और विधानसभा चुनाव में भी वोट प्रतिशत भी मामूली ही ज्यादा था इसलिए वहां बीजेपी एक बनाम पैंतीस कौम यानि जाटों के खिलाफ़ अन्य सभी को गोलबंद करके चुनाव जीत लिया होगा और कांग्रेस को उसकी गुटबाजी और उसके बागियों ने ही हरवा दिया होगा।

* अब तक मैं यही मानती थी कि बीजेपी अपने तथाकथित माइक्रो मैनेजमेंट के तहत विपक्ष के वोट कटवा बागी उम्मीदवारों को स्पॉन्सर करके, हिंदू - मुस्लिम से अपने वोट का ध्रुवीकरण करके, विपक्ष के जातिगत वोटबैंक जैसे उत्तर प्रदेश व बिहार में यादव, हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा के खिलाफ़ अन्य जातियों की गोलबंदी करके और मतदाताओं को पैसे बांटकर चुनाव जीतती है।

* साथ ही चुनाव जीतने के लिए विपक्षी पार्टियों और उनके उम्मीदवारों को डराने के लिए ईडी - सीबीआई, इनकम टैक्स का उपयोग भी करती है जैसे सूरत, इंदौर, झांसी मॉडल।

* लेकिन महाराष्ट्र में कई विधानसभा क्षेत्रों से ऐसी खबरें आ रही है जैसे कि देवलाली विधानसभा के वंचित बहुजन आघाड़ी तथा दहिसर विधानसभा में मनसे प्रत्याशी के अपने गांव के बूथ पर उनके परिवार के सदस्यों के भी वोट नहीं मिले।

* धूलिया ग्रामीण से रिपोर्ट मिल रही है कि एक गांव के लोग तो इसलिए सड़कों पर उतर आए क्योंकि उनका दावा है कि उनके गांव में 70 प्रतिशत मतदान कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में किया था लेकिन गिनती में कांग्रेस को शून्य मत मिला।

* एक वीडियो धनंजय मुंडे की परली विधानसभा से भी आया है जहां यूपी मॉडल की तरह उनके समर्थक गुंडे विरोधी पक्ष के मतदाताओं को बूथ तक आने से रोकते नज़र आ रहे हैं।

* कुल मिलाकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचती हूं कि इसमें बेचारी ईवीएम का कोई दोष नहीं है, उनमें न तो विवेक होता है, न ही भावनाएं होती है, उसे तो संचालित करने वाला व्यक्ति या प्रोग्राम जो निर्देश देता है, वह सिर्फ़ उनका पालन करती है।

* लोग आशंका जता रहे है कि यह हरियाणा मॉडल है लेकिन मैं कहती हूं यह हरियाणा नहीं, मध्य प्रदेश नहीं बल्कि गुजरात का प्रो इनकमबैन्सी मॉडल है। गुजरात चुनाव पूर्व ही राजीव कुमार ने चुनावी नियमों में बदलाव करते हुए मतदान समय सीमा पूर्ण होने के पश्चात भी कतार में खड़े सभी लोगों को मतदान करवाने का नियम बनाया था और उसके बाद प्रत्येक चुनाव में देर रात अप्रत्याशित मतदान प्रतिशत बढ़ने का प्रचलन बढ़ा है।

* मुझे लगता है जनमत वोटाले के कई तरीके है और हर बार या हर जगह अलग - अलग तरीके अपनाए गए है जैसे -- विपक्षी पार्टियों के मनी ट्रांसफर पर कड़ी नज़र रखना और आक़ा के विमान की तलाशी का सिर्फ़ दिखावा करना, विपक्ष के मतदाताओं को चिन्हित करवाकर मतदाता सूची से उनका नाम हटवाना, अशिक्षित मतदाताओं को मतदान न करने के लिए पैसे देना और बिना वोटिंग स्याही लगाना, अपने लोगों की फर्जी वोटिंग करवाना, डिजिटल हैकिंग के माध्यम से निश्चित समय पश्चात फ्रिक्वेंसी सेटिंग एक्टिव करना, ईवीएम सुरक्षा कक्ष के सीसीटीवी बंद करके ईवीएम का डाटा या ईवीएम मशीन ही बदल देना।

* कुछ अंधभक्त कुतर्क करते है कि विपक्ष बंगाल, जम्मू कश्मीर, झारखंड में कैसे जीता तो मैं कहती हूं चुनाव आयोग आपकी तरह मूर्ख नहीं बल्कि धूर्त है। आम इंसान उनकी चालाकी समझ न पाए इसलिए दो या दो से अधिक राज्यों के चुनाव में महत्वपूर्ण राज्य हेराफेरी करके मोदी को दे देता है और छोटा राज्य सांत्वना पुरस्कार की तरह विपक्ष को दे देता है ताकि वह भी ईवीएम का खुलकर विरोध न कर पाए।

* हालांकि मेरा मानना है कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और हरियाणा और लोकसभा चुनावों में जहां राजनीतिक समीकरण पुराने ही थे, वहां और खासकर डबल इंजन वाले राज्यों में सफलतापूर्वक आटे में नमक जितनी नाप - तोलकर हेराफेरी कर पाए और आम लोगों को शक नहीं हुआ और उसे ही जनमत का फैसला मान लिया लेकिन चूंकि महाराष्ट्र में राजनीतिक पार्टियों की टूट और नए समीकरणों के बीच बराबर नाप - तोलकर हेराफेरी नहीं कर पाए, परिणामस्वरूप लोकसभा में स्वाद फीका कर रह गया तो इस बार नमक में ही आटा मिला दिया इसलिए निष्पक्ष लोगों को भी नतीजों का स्वाद ज्यादा ही कड़वा लग रहा है और वे भी ईवीएम के मतों में विपक्ष को समाप्त करने की साजिश की कृत्रिम मिलावट का दावा कर रहे हैं।

* मेरा मानना है कि चोर कितना भी शातिर क्यों न हो जब वह एक ही समय एक ही मोहल्ले में एक साथ कई घरों में चोरी करता है तो जल्दबाजी या हड़बड़ाहट में कहीं न कहीं अपने सबूत छोड़ देता है इसलिए अगर लोकसभा चुनाव में तिरुपति सीट और उपचुनाव में नांदेड़ लोकसभा और कुंदरकी विधानसभा के चुनावी नतीजों पर विशेषज्ञों की मदद से विशेष शोध व अध्ययन किया जाए तो सारा खेल पकड़ में आ जाएगा।

* मेरी सांख्यिकी समझ के अनुसार महाराष्ट्र में 7.83 प्रतिशत मतदान बढ़ाकर जो करीब 76 लाख वोट बढ़ाए गए है यानि औसतन हर सीट पर 26500 वोट एकतरफा सत्ताधारी महायुति घटकों के पक्ष में बढ़ाए गए। इससे महायुति को वास्तविक मतदान में 26500 से कम अंतर वाली लगभग 100 सीटें अतिरिक्त मिल गई वर्ना महायुति लगभग 130 सीटें ही जीत पाती।

* लोकमत मराठी समाचार पत्र ने भी चुनाव आयोग के आंकड़ों का विश्लेषण करके बताया कि 95 सीटों पर मतदान किए गए वोट और गिने गए वोटों में भी अंतर पाया है।

* अगर हरियाणा जितनी ही 20 - 25 सीटों पर हेराफेरी की होती तो सामान्य इंसान भी मान लेता कि लाड़की बहिन योजना और बंटेगे तो काटेंगे के नारे ने काम किया होगा या हरियाणा में हुड्डा - शैलजा की तरह महाराष्ट्र में संजय राउत और नाना पटोले का बड़बोलापन ने नुकसान कर दिया होगा लेकिन किसी एक पार्टी का भी नेता विपक्ष के लायक न रहना भी लोगों की आशंका को बल देता है।

* चूंकि चुनाव आयोग मतगणना से पूर्व प्रत्येक विधानसभा में मतदान की वास्तविक संख्या न बताकर सिर्फ़ मत प्रतिशत बताता है, साथ ही मतदान का प्रतिशत दिनभर जिलेवार बताता है और अंतिम आंकड़े विधानसभावार जारी करता है ताकि बड़े - बड़े सांख्यिकीविद भी वास्तविक गड़बड़ी को आसानी से न पकड़ पाए।

* गड़बड़ी की आशंका इससे भी पुष्ट होती है कि चूंकि बीजेपी को अपने महायुति के साथियों पर भी पूरा भरोसा नहीं था, इसलिए 132 अकेले बीजेपी और 12 निर्दलीय या छोटी पार्टियों के विधायक मिलाकर ही बहुमत का जुगाड किया गया। 

* महाराष्ट्र और हरियाणा में मोदीजी की रेलियों में हजारों कुर्सियां खाली दिखती थी फ़िर भी नतीजे आश्चर्यजनक रूप से एकतरफा बीजेपी के पक्ष में वहीं झारखंड में भी शिवराज सिंह चौहान और हेमंता बिस्वा सरमा द्वारा तीन महीने तक लगातार डेरा डालने के बावजूद पहले से भी कम सीटें मिलना। साथ ही झारखंड में पहले चरण और दूसरे चरण के चुनाव में वोट प्रतिशत क्रमशः 01तथा 0.5 ही बढ़ा और बीजेपी को सीटें भी इसी अनुपात में मिली। इसी प्रकार जिस भी भी राज्य में मत प्रतिशत जितना ज्यादा बढ़ा, बीजेपी को उतनी ही बड़ी सफलता मिली और जहां मत प्रतिशत में कम इज़ाफ़ा हुआ वहां बीजेपी की सीटें घटी। यह रहस्य इस संदेह को और गहरा करता है।

* जहां भी मतगणना में गड़बड़ी की आशंका हुई और दोबारा मतगणना करवाई गई, वहां पहली बार हमेशा बीजेपी प्रत्याशी ही जीता और दोबारा गिनती के बाद कोई अन्य प्रत्याशी जीतता है। ताजा उदाहरण नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव। ऐसा कभी क्यों नहीं होता कि पहली मतगणना में कोई अन्य जीते और दोबारा गणना में बीजेपी जीते।

* सुबह - सुबह बैलेट पेपर में विपक्ष जीतता दिखता है और दस बजे के आसपास अचानक बीजेपी बड़ी बढ़त बना लेती है और दो - दो घंटे तक आंकड़ों में कोई बदलाव भी नहीं होता और अंततः वैसे ही आंकड़े लगभग अंतिम नतीजे बन जाते है।

* कल यानि 25 नवंबर को मैं शरद पवार साहब की अध्यक्षता में स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण साहेब की 40वीं पुण्यतिथि पर कार्यक्रम के उपलक्ष्य में वाई. वी. चव्हाण सेंटर, मंत्रालय जा रही थी, तब यात्रा में चुनाव ड्यूटी से वापसी कर रहे कई सीआरपीएफ के जवान मिले, जो दिल्ली की ट्रेन पकड़ने के लिए लोकल से मुंबई सेंट्रल जा रहे थे। तब मैंने उनसे चुनाव के अनुभव के बारे में बातचीत की तो एक हरियाणा और एक राजस्थानी जवान ने भी मुझे बताया कि हमारे ऊपर भी सरकार का बहुत दबाव रहता है। हमारे में भी हर ग्रुप के साथ एक सरकारी चमचा कट्टर अंधभक्त जवान रहता है और उसे ही हमारा बॉस बनाया जाता है इसलिए हमें भी मजबूरन सत्ता के साथ दिखना पड़ता है।

* हां एक गलती या लापरवाही मैं विपक्ष की भी मानती हूं कि भले आपके पास लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं था लेकिन आपने अपने पोलिंग एजेंट प्रशिक्षित व अनुभवी लोगों को नहीं बनाया और न ही फार्म 17सी को लोकसभा चुनाव के दौरान स्टालिन जी की तरह अपनी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दिया होता तो केंचुआ पर गड़बड़ी न करने का एक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता।

* एक जमीनी सर्वेक्षक के तौर पर मेरा दावा है कि आज की स्थिति में जहां इंडिया गठबंधन एकजुट होकर लड़ेगा वहां वह मत प्रतिशत में बीजेपी से बीस है और अगर हार भी जाएगा तब भी एक मजबूत विपक्ष के रूप में रहेगा, जहां कांग्रेस - बीजेपी की आमने - सामने की टक्कर है, वहां बीजेपी थोड़ी भारी है लेकिन अगर बीजेपी पहले से सत्ता में है तो एंटी इनकमबैन्सी फैक्टर से सत्ता परिवर्तन होता है। 

* मेरे सर्वेक्षण के मुताबिक उत्तर भारत खासकर राजस्थान व हरियाणा में बीजेपी का आधार वोट 2014 के बाद लगातार बढ़ा है। 2014 से पहले हर छठा व्यक्ति संघ और कट्टर हिंदुत्व के आधार पर वोट करता था। 2014 में हर पांचवा व्यक्ति अंधभक्त बना, 2019 में हर चौथा व्यक्ति अंधभक्त बना और आज हर तीसरा व्यक्ति अंधभक्त है। इसलिए आज की तारीख में जहां सिर्फ़ कांग्रेस और बीजेपी दो प्रमुख दल है, वहां बीजेपी और कांग्रेस के पास क्रमशः 35 व 30 प्रतिशत वैचारिक मतदाता है और लगभग 10 प्रतिशत उदारवादी फ्लोटिंग मतदाता है जो हमेशा बदलाव की बात करते है और सत्ताधारी पार्टी को बदलने में भूमिका निभाते है। 

*अब आगे क्या ?*

* प्रत्येक पार्टी तुरंत प्रभाव से अपनी पार्टी में कुछ चुनावी डाटा विशेषज्ञों की नियुक्ति करे। आंकड़ों के सांख्यिकी विश्लेषण द्वारा गड़बड़ियों के प्रमाण जुटाए और निर्धारित समयसीमा में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाले और सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव डालने हेतु धरातल पर एक मजबूत जनांदोलन खड़ा करे और संपूर्ण विपक्ष मिलकर ईवीएम से चुनाव न लड़ने की घोषणा करे।

* अन्यथा अब आगे दिल्ली विधानसभा और बीएमसी के चुनाव एकसाथ होंगे, उसमें ये बीएमसी पर कब्जा करेंगे और दिल्ली चूंकि उसे उपराज्यपाल से नियंत्रित कर लेंगे इसलिए दिल्ली केजरीवाल को सौंपकर ईवीएम के मुद्दे को गौण कर देंगे। और हां केजरीवाल को भी सीमित बहुमत देंगे और ये मजबूत विपक्ष बनेंगे ताकि ये फिर बड़ी - बड़ी डींगे भी हांक सके कि हम सत्ता में भले ही नहीं आ पाए लेकिन हमारी सीटें तो बढ़ी है और लोग भी फ़िर से ईवीएम पर भरोसा करने लग जाएंगे। आखिर केजरीवाल भी तो विचारों से इनका ही छोटा भाई खाकी चड्डीधारी नारंगी गैंग का ही तो है।

* अगर आप ईवीएम को बंद नहीं करवा पाए तो विपक्षी पार्टियों के जीते हुए सांसद और विधायक भी अपना भविष्य बचाने हेतु बीजेपी में चले जाएंगे और सभी विपक्षी नेताओं की स्थिति उन रजवाड़ों के जैसी हो जाएगी जिनका साम्राज्य तो छीन चुका होगा, सिर्फ़ हवेलियां बचेगी यानि सिर्फ़ कांग्रेस मुक्त ही नहीं बल्कि विपक्ष मुक्त संसद और अंधभक्तों का भारत बचेगा।

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