आलोक अग्रवाल/विरेन्द्र चौधरी
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट का आदेश क्या है? 5 पॉइंट्स में समझिए
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका देते हुए नगर निकाय चुनाव के लिए जारी ओबीसी आरक्षण के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने साथ ही निकायों में प्रशासक नियुक्ति के शासनादेश को भी निरस्त कर दिया है,और कहा है कि बिना ओबीसी आरक्षण निर्धारण के ही चुनाव कराए जाएं। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि बिना ट्रिपल टेस्ट/शर्तों के ओबीसी आरक्षण तय नहीं किया जा सकता। और ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने में काफी समय लगेगा, ऐसे में हम इंतजार नहीं कर सकते।
भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए चुनाव जल्द से जल्द हों, ये जरूरी है।
समझिए हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा क्या है…
1. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहरी विकास विभाग में धारा 9-ए(5)(3) के तहत 5 दिसंबर 2022 को जारी अधिसूचना निरस्त की जाती है। इस अधिसूचना के रद्द हो जाने से हाल ही में जो सीटों को लेकर बदलाव सामने आया था, वो वापस हो गया है।
2. सरकार की तरफ से 12 दिसंबर 2022 को जो शासनादेश जारी किया गया था कि निकायों का जहां कार्यकाल पूरा हो रहा है, वहां कार्यपालक अधिकारी और वरिष्ठतम अधिकारी के माध्यम से नगर पालिकाओं के खाते चलेंगे, उसे निरस्त कर दिया गया है।
3. हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिना ट्रिपल टेस्ट/शर्तों के ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता। दूसरा हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि चूंकि तय फॉर्मूले यानी ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने में कई महीने लग सकते हैं, ऐसे में चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के ही तुरंत कराए जाएं। मतलब ये कि हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद अब जो उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव होंगे, उसमें एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर कोई भी चुनाव लड़ सकता है। ये सीटें सामान्य/खुली श्रेणी के लिए अधिसूचित की जाएंगी।
4. हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में ये भी साफ कर दिया है कि अगर नगर पालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो चुनाव होने और निकाय के गठन तक तमाम मामलों को एक कमेटी देखेगी, जो तीन सदस्यीय होगी और इसकी अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट करेंगे। सदस्यों में जिनमे कार्यकारी अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी/नगर आयुक्त शामिल होंगे। वहीं इस कमेटी में तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित होगा, जो जिले स्तर का अफसर होगा।साथ ही ये भी सनद रहे कि ये कमेटी कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती, सिर्फ रोजाना के कार्यों का ही निर्वहन करेगी।
5. हाईकोर्ट ने कहा है कि हम समझते हैं कि आयोग के लिए ये एक भारी और समय लेने वाला काम है, लेकिन भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों, हम इंतजार नहीं कर सकते।
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